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________________ जैनवालवोधककी भुजामें था । भरतको भगवान ऋषभ देवने स्वयं पढ़ाया था, प्रधानतया ये नीतिशास्त्रके बड़े विद्वान थे। ___एक दिन भरत महाराजके धर्माधिकारी (कर्मचारी )ने पाकर भगवानको केवलशान उत्पन्न होनेकी खबर सुनाई और उसी वक्त शस्त्रशालाके अधिकारीने आयुधशालामें चैकरन उत्पन्न होनेकी खबर सुनाई और महारानीके सेवकने प्रथम पुत्रोत्पत्तिकी खवर दी । ये तीनों ही हर्षदायक समाचार एक साथ सुनकर महाराज भरत विचार करने लगे कि पहिले किसका उत्सव मनाना चाहिये, अंतमें धर्म कार्यको मुख्य समझकर अपने छोटे भाइयों वा राजकर्मचारियों और प्रजाके साथ भगवान ऋपभदेवके दर्शन पूजनार्थ उनकी शरणमें गये । पूजा बंदना भक्ति करके व केवली भगवानके मुखसे धर्मोपदेश श्रवण करके सुदर्शनचक रत्नकी पूजा की और उसे ग्रहण किया । तत्पश्चात् १। यह चक्र रत्न १००० देवोंकी रक्षामें रहता है देवोपनीत आयुध है यह चर्म शरीरी और अपने मालिकके कुटुंवियोंको छोडकर सब पर चलता है इसके अधिकारी चक्रवर्ती वा नारायण वा प्रतिनारायण ही होते हैं, चक्रवर्ती छहखंडके राजा होते हैं और नारायण प्रतिनारायण तीन खंडके राजा होते हैं इन्हींके पुण्य प्रतापसे ही यह रत्न देवोंके द्वारा आयुधशालामें आ जाता है। परंतु नारायणके पास जव कि प्रतिनारायण इस चक्रको चलाता है तव ही नारायण की परिक्रमा देकर नारायणके हाथमें आ नाता है नारायण प्रतिनारायणको इसी चक्रसे मारकर उसीके त्रिखंडका । . . राज्य करता है।
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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