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जैनवालवोधक
१०. नय।
१। वस्तुके एक देशको जाननेवाले ज्ञानको नय कहते हैं।
२।नय दो प्रकारका है। एक निश्चयनय दूसरा व्यवहार'नय । व्यवहारनयको उपनय भी कहते हैं। __३. वस्तुके किसी असली अंशको ग्रहण करनेवाला झान 'निश्चय नय है । जैसे-मिट्टीके घड़ेको मिट्टीका घड़ा फहना ।
४। किसी निमित्तके वशसे एक पदार्थको दूसरे पदार्थ रूप जाननेवाले ज्ञानको व्यवहारनय कहते हैं । जैसे, मिट्टीके घड़ेको घी रहनेके निमित्तसे घीका घड़ा कहना।
५। निश्चय नय दो प्रकारका है। एक द्रव्यार्थिकनय, दुसरा पर्यायार्थिकनय।
६। द्रव्य अर्थात् सामान्यको ग्रहण करै उसे द्रव्याथिकनय कहते हैं।
७। जो विशेष अर्थात् द्रव्यके किसी गुण या पर्यायको विषय करै उसे पर्यायार्थिकनय कहते हैं।
द्रव्यार्थिकनय, नैगम, संग्रह और व्यवहारके भेदसे तीन 'प्रकारका है। ___ दो पदार्थों में से एकको गौण और दूसरेको प्रधान करके भेद अथवा अभेदको विषय करनेवाला ज्ञान नैगम नय है । तथा पदार्थके संकल्पको ग्रहण करनेवाला ज्ञान नैगम नय है। जैसे,कोई आदमी रसोई घरमें चावल लेकर वीनता था। किसीने