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जैनदालबोधक
सुभद्राने अवधिज्ञानी मुनिराज से पूछा कि -- महाराज मेरा मनोरथ भी कभी सिद्ध होगा ? मुनिमहाराजने मनोगत अभिप्राय जान कर कहा कि- "हां होगा अवश्य होगा परंतु जिस दिन तेरे उस मोक्षगामी भव्यजीव पुत्रका जन्म होगा, तेरे स्वामी पुत्रका मुख देखकर मुनि हो जायगे । दुसरे जिस दिन तेरा वह पुत्र किसी मुनिको देख पावैगा तौ वह भी मुनि दीक्षा लेकर योगी हो जायगा ।
मुनिमहाराजके कथनानुसार नौ महिने बाद यशोभद्रा सेठानी के उदरसे नागश्रीका जीव वही महर्द्धिकदेव पुत्ररूपसे उत्पन्न हुप्रा और उसका नाम सुकुमाल रक्खा गया । उधर सुरेंद्र पुत्र के दर्शन करके मुनिदीक्षा लेकर कर्मोंको काटने लगा ।
जब सुकुमाल युवावस्थाको प्राप्त हुआ तो उसकी माता यशोभद्राने अच्छे २ घरानेको ३२ सुंदर कंन्याओंके साथ विवाह करा दिया और उन सबके लिये एक जुदा ही बड़े बड़े रमणीक महल जिसके पीछे मनोहर उपवन था वनवाकर सर्व प्रकार की भोगोपभोग समाग्रियोंसे सजा दिया सो सुकुमालजी अहोरात्र ३२ स्त्रियों सहित नानाप्रकार के भोगों में अहोरात्र मग्न हो रहे सूर्योदय और मस्तका भी उन्हे ठिकाना न रहा ।
· एक दिन वाहरके सौदागरने एक बहुमूल्य रत्नजडित कंबल बेचने के लिये राजा के पास जाकर दिखाया परंतु उसकी कीमत अत्यंत अधिक होनेसे राजा नहिं ले सका। किसी के कहनेसे वह सुकुमालशेठ के घर माया तौ यशोभद्राने तुरंत ही मुख मांगे दाम देकर वह कंवल सुकुमालके लिये महल पर भेज दिया परंतु