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________________ ३२६ जैनवालवोधककुछभी अधिकार नहीं है । तू भले ही कह कि यह मेरी लड़की है परंतु वास्तव में यह तेरी लड़की नहि है ऐसा कहकर मुनिमहाराजने नागश्रीको पुकारा । नागश्री झटसे पाकर उनके पास वैट गई । अब तो ब्राह्मण देवता बड़े घबराये। 'अन्याय' 'अन्याय' कहकर चिल्लाते हुये राजाके यहाँ जाकर पुकारा कि मेरी वेटोको नंगे साधुओंने छीन लिया । सो मुझे दिला दीजिये। यह वात सुनकर राजा और राजसमा चकित हो गई । क्या बात है ऐसा कैसे हो सकता है तब राजा सबके साथ मुनिमहाराजकी सभा में पाया और सोमशर्माने फिर कहा कि देखिये वह नामश्री लड़की मेरी वैठी है मुनिराज कहते हैं कि-मेरी है। इस प्रकार झगड़ा होनेके वाद सोमशर्मासे मुनि वोले कि यदि यह लड़की तेरी है तौ वता कि तूने इसे क्या पढ़ाया है ? मैंने तो इसे सब शास्त्र पढ़ाये ! इसलिये मैं कहता हूं कि यह लड़की मेरी है। तव राजा बोले प्रभों ! यदि आपनेहसको सव शास्त्र पढ़ाये हैं तो उन शास्त्रोंमें इसकी परीक्षा दिलवाइये जिससे हमे विश्वास हो। ____ तव मुनिमहाराज नागश्रीके शिरपर हाथ रखकर वोले कि हे नागश्री ! मैंने तुझे वायुभूतिके भवमें जितने शास्त्र पढ़ाये हैं। उनमें इस उपस्थित मंडलीको परीक्षा दे । फिर क्या था मुनिमहाराजकी प्रामा होते ही जन्मांतरके पढ़े हुये सब शास्त्र नागश्री ने धारा प्रवाह सुना दिये । राजा और उपस्थित समस्त जनोंको .बड़ा अचंभा.हुआ। सबके चित्त डामाडोल हो गये नागश्री छोटीसी लड़की अभी तक इसके पिताने अक्षराभ्यास भी नहि कराया यह सव शास्त्र किस प्रकार सुनाने लगी ।. सवने हाथः
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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