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चतुर्थ भाग।
वस्तुछंद। ध्यान धारन ध्यान धारन विषय सुत्र न्याग ।
करुना रस पादरन, भूमि सैन इंद्रीनिरोधन ॥ व्रतसंयम दान तप, भगति भाव सिद्धांत साधन ।
ये सब काम न पावहि, व्यों विन नायक सेन । शिव सुख हेतु बनारसी, फर प्रतीति गुरुवन४॥
ध्यानकाधारन करना, विषयसुखका त्याग करना, करुणारस का आदर करना, जमीनपर सोना, इन्द्रियोंको यशमें करना, व्रत, तप, संयम, दान, भक्ति भाव, सिद्धांतका पठन पाठन, ये सब कार्य विना नायकके सेनाकी तरह गुरुके विना कोई काम नहीं हैं, इसकारण शिवसुनके लिये गुरुके वचनानुसार ही प्रतीति करके चलना चाहिये।४।
---- --- ९ चौदह कुलकर।
जब तीसरे कालके अंत होने में एक पल्यका पाठयां भाग वाकी रहा तब पापाढ़ सुदी २पूर्णमासीकै दिन नायंकालको पश्चिम में तो सूर्य अस्त होता दिखाई दिया और पूर्वमें चन्द्रमाको उदय होता दिखाई दिया । यधपि सूर्य चंद्रमा अनादि कालसे प्रस्त उदय होते रहते हैं परन्तु इन तीनों कालोंमें ज्योतिरंग जातिके कल्पवृत्तोंके प्रकाशमें दिखाई नहि देते थे, सो तीसरे कालफा जब अंत हो गया तो कल्पवृत्तोंका प्रकाश कम होने से सूर्य चंद्रमा