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________________ चतुर्थ भाग। २६३ तिर्यंच लवणसमुद्र कालोदधि समुद्र और स्वयंभूरमण समुद्र के सिवा अन्य समुद्रों में नहीं है। ___ .१२। मेरुसे नीचे सात राजू अधोलोक है । मेरके ऊपर लोकके अन्त पर्यन्त उर्ध्वलोक है । और एक लाख चालीस योजन * मेरकी ऊंचाईके वरावर मध्य लोक है । मध्यलोकके अत्यंत वीचमें एक लाख योजन चौड़ा गोल थालीकी तरह जंबूद्वीप है । जंबूद्वीपके बीच में एक लाख योजन ऊँचा सुमेक 'पर्वत है जिसका एक हजार योजम जमीनके भीतर मूल है। निन्याणवे हजार योजन पृथिवीके ऊपर है और चालीस योजन की यूलिका (चोटी) है ।जंबूद्वीपके वीचमें पश्चिम पूर्वको तरह लवे छह कुलाचल पर्वत पड़े हुये हैं। जिनसे जंबूद्वीपके सात खंड होगये हैं इन सातो खंडोंके नाम इस प्रकार है, भरत १ हैमवत २, हरि ३ विदेह ४, रम्यक ५, हरपयवत ६ और पेरा. वत ७ । और ६ पर्वतोंके नाम इस प्रकार है-हिमवन, महादिम'वन, निपध, नील, रुक्मी और शिखरी । विदेहक्षेत्र में मेरुसे उत्तर की तरफ उत्तरकुरु और दक्षिणकी तरफ देवकुरु नामकी दो 'भोगभूमि है । वृद्धीपके चारों तरफ खाईकी तरह पड़े हुये दो लाख योजन चौड़ा जवण समुद्र है। लवणसमुद्रको चारों तरफ वेड़ा हुवा चार लाख योजन चौड़ा धातकीखंड नामका होग है। इस धातुकीखंड द्वीपमें दो मेरु पर्वत है और क्षेत्र कुलाचलादिकी सव रचना जंबूद्वीपसे दूनी है। धातुकी खंडको चारों तरफ वेड़े हुये पाठ लाख योजन चौड़ा कालोदधि समुद्र है। * यहां एक योवन दो हमार कोषका मानना । - -
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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