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________________ ૨૨૦ जनचालवोधक१०। राजा विश्वसेन और 'वामादेवीके उदरसे पार्श्वनाथ . तीर्थकर हुये। --- -- ४१. छहढाला सार्थ-तीसरी ढाल । --::-- नरेंद्र छंद २८ मात्रा ( योगीरासा )। "आतमको हित है सुब, सो सुख प्राकुलता विन कहिये। आकुलता शिवमादिन ताते, शिवमग लाग्यो चहिये । सम्यग्दर्शन ज्ञान चरण शिव, या सो दुविध विचारो। 'जो सत्यारथ रूप सुनिश्चय, कारन सो व्यवहारो॥१॥ पर द्रव्यनि भिन्न श्रापमें, रुचि सम्यक्त मला है। आपरूपको जानपनो सो, सम्यकज्ञान कला है ।। 'आपरूपमैं लीन रहै थिर, सम्यक चारित सोई। अव व्यवहार मोक्षमग सुनिये, हेतु नियतिको होई ॥२॥ आत्माका हित सुखमें है, प्राकुलता ( इच्छा ) रहितको सुख कहते हैं । मोत्तमें आकुलता नहीं है इस लिये मोक्षमार्गमें लगना उचित है । सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रकी एकता को मोक्षमार्ग कहते हैं सो निश्चय व्यवहारके भेदसे दो प्रकार · का है। जो सत्यार्थरूप है सो तो निश्चय मोक्षमार्ग है और निश्चय मोक्षमार्गका कारण रूप व्यवहार मोक्षमार्ग है ॥१॥ पर द्रव्योंसे भिन्न अपनी आत्मामें ही रुचि (श्रद्धान ) रखना सो तो :निश्चय सम्यग्दर्शन है तथा अपने रूपको जानना सो निश्चय
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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