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________________ चतुर्थ भाग। १. लक्षण। १. पदार्याको जाननेके लक्षण, प्रमागा, नय और निक्षेप ये चार उपाय हैं। २। बहुतसे मिले हुये पदामिसे किसी एक पदार्थको जुदा करने वाले हेतु (करण) को लक्षण कहते हैं। जैसे जीवका लक्षण चेतना। ३। लक्षणके दो भेद हैं एक प्रात्मभूत दूसरा अनात्मभूत । ४। जो लक्षण वस्तुके स्वरूपमें मिला हो उसे आत्मभूत लक्षण कहते हैं। जैसे, अग्निका लक्षण उपापना । ५. जो लक्षण वस्तुके स्वरूपमें न मिला हो उसे अनात्मभूत. लक्षण कहते हैं । जैसे-लठेतका लक्षण लाठीवात्ता । ६। सदोष लक्षणको लक्षणामास कहते हैं । लक्षणके दोर. तीन हैं एक अव्याप्ति दूसरा अतिच्याग्नि, तीसरा असंभव दोय । ७। जिस वस्तुका लक्षण किया जाय उसे लक्ष्य कहते हैं । ८ाजोलक्षण लक्ष्यके एकही देशमें व्यापैसव लक्ष्योंमें न पाया जावे उसे अव्याप्ति दोष कहते हैं। जैसे पशुका लक्षण (पहचान ) सींग कहना। जो लक्षण किया जाय वह लक्षण लक्ष्य और अलक्ष्य दोनों में व्यापै उसे अतिव्याति दोप कहते हैं । जैसे,-गांका लक्षण सींग करना। १०। लक्ष्यके सिवाय अन्य पदार्योंको अलक्ष्य कहते हैं।। ११ । जो लक्षणं लक्ष्य में सर्वया पाया ही नहि जावे उसे असंभव दोप कहते हैं। जैसे,-अग्निका लक्षण शीतलता करना :
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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