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चतुर्थ भाग। यंतर या ज्योतिषी देवोंका शरीर धारण करता है परंतु वहां भी हर समय विषयोंकी चाहरूपी अग्निमें जलता रहा और मरा तव अनेक प्रकारके विलाप करके दुख पाया। जो कभी स्वर्गका भी देव हुआ तौ सम्यग्दर्शन विना सदा दुख ही पाता है। ऐसी दशामें स्वर्गसे मरकर फिर एकद्रियका शरीर धारण करता है और इसी प्रकार यह जीव संसारमें (चारों गतियोंमें ) भ्रमण करता फिरता है । १७॥
३४. दसरथ राम लक्ष्मण सीता। भगवान् ऋषभदेवसे इक्ष्वाकुवंश चला था जिसका दूसरा नाम सूर्यवंश भी है। इस वंशमें भगवान् ऋषभदेवके पश्चात् बड़े २ राजा महाराजा चक्रवर्ती अनेक महापुरुष (पुरुषरत्न) हो गये इसी वंशमें अजुध्या नगरीमें एक सर्वरथ उनके द्विरद रथ, द्विरदयके सिंहदमन, सिंहदमनके हिरणकश्यप, हिरणकश्यपके पुंजस्थल और पुंजस्थलके रघु बडा पराक्रमी पुत्र हुवा । रघुके अरण्य नामका पुत्र हुवा । अरण्यकी पृथिवीमती रानीके दो पुत्र हुये । एक अनंतरथ, एक दशरथ । __महिष्मती नगरीका राजा सहस्ररश्मि अरण्यका परम मित्र था। जब लंकाधिपति रावणने युद्ध में सहलरश्मिको जीत लिया और सहस्ररश्मि संसार शरीर भोगोंसे विरक्त होकर दीक्षा लेने लगे तो अपने मित्र अरण्यको पूर्वमें की हुई प्रतिज्ञाके अनु