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________________ जैनवालवाधरकार्माण पुद्गलस्कंधका प्रात्मास संबंध होनेको प्रकृतिबंध कहते हैं। . ७। प्रकृति वंध आठ हैं,-शानावरण १. दर्शनावरण २, वेद. नीय ३, मोहनीय ४, प्रायु ५, नाम ६, गोत्र ७, और अंतराय ८॥ जो कर्म आत्माके ज्ञान गुणको घाने, उसको ज्ञानावरण कर्म कहते हैं। ज्ञानावरण फर्म पांच प्रकारका है-मतिक्षानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपयर्यशानावरण, और केवलक्षानावरण। ___! जो आत्माके दर्शन गुणको घातै, उसे दर्शनावरण कर्म कहते हैं। दर्शनावरण कर्म नौ प्रकारका है । धनदर्शनावरण, प्रचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचला प्रचला, और स्त्यानगृद्धि । १०। जिसकर्मके फलसे जीवकै आकुलता हो, अर्थात् जो अव्यावाध गुणको घातै, उसे वेदनीय कर्म कहते हैं । वेदनीय कर्म साता वेदनीय असाता वेदनीयके भेदसे दो प्रकार है। ११ । जो आत्माके सम्यक्त्व और चारित्रगुणको घातै उसे मोहनीय कर्म कहते हैं । मोहनीय कर्म दो प्रकारका है, एक दर्शन मोहनीय, दूसरा चारित्र मोहनीय । १२ । जो आत्माके सम्यक्त्वगुणको घातै, उसे दर्शनमोहनीयकर्म कहते हैं। : १३ । दर्शनमोहनीयकर्म तीन प्रकारका है। मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व, सम्यकप्रकृति । . .... : . . .
SR No.010334
Book TitleJain Bal Bodhak 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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