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तृतीय भाग ।
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दाल में काला दिखता है, कारण मैं एक दिन मंदिरजी गई थी तौ मंत्री के पुत्र कडारपिंगलने मुझे वडी बुरी निगाहसे देखा था सो कदाचित् मंत्रीने राजाको बहकाकर आपको
परदेश भिजवाया है, आपके पीछे मंत्रीका पुत्र शायद उपद्रव करै तौ ताज्जुब नहीं, अतः ध्व्याप जहाजोंको तौ रवाना कर दें और दो चार दिन यहांका हाल जाने बाद दूसरे जहाज से जावें तौ ठीक हो । कुवेरदत्तको स्त्रीकी यह सलाह ध्यानमें जच गई, उसने जहाज रवाना करा दिया, और प्रसिद्ध करा दिया कि कुवेरदत्त रत्नद्वीपको चले गये, परंतु रात्रिमें अपने घर आकर छिप गया ।
कडा पिंगलको तौ दिन पूरा होना मुशकिल हो गया था, रात होते ही वह कुवेरदत्त शेठके घर चल दिया । प्रियंगु सुंदरीने भी एक पायखानेके ऊपरकी छतपर आदमी जाने -लायक छिद्र कराकर उसपर विना बुना हुआ पलंग बिछा कर ऊपरसे दरी गलीचा वगेरह बिछा दिया और सब शृंगार करके कडारपिंगलकी वाट देखने लगी जब कडारपिंगल आया तो बडे आदर के साथ ऊपर लेजाकर पलंगपर बैठनेको कहा । कडारपिंगल बैठते ही अँधेरे पायखानेके कोटमें जा गिरा । जब वहांकी दुर्गंधकी लपट नाक में घुसी तौ मालुम हुआ कि हम कैसी जगह ( भयानक नरकमें ) पड़े हैं इधर कुबेरदत्तने उसी तरह उस कुएमें कैद रखकर जीवित रखनेका sers करके रत्नद्वीपका रास्ता लिया । ६ महीने बाद
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