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मुलभनैनप्रथमाला नं ८
श्रीपरमात्मने नमः
जैनबालबोधक तृतीय भाग।
दोहा। पंच परम पद अनमि कर, जिनवानी उरधार। जैन वालवोधक तृतीय, संग्रह करूं विचार ॥१॥
१।श्रीमहावीर प्रार्थना.
(न्यायालंकार पं० मक्खनलालजी कृत) हे सर्वज्ञ वीर जिन देवा, चरण शरण हम आते हैं । मान अनंत गुणाकर तुमको, चरणों शीत नमाते हैं | कथन तुम्हारा सबको प्यारा, कहीं विरोध नहीं पाता। अनुभव वोध अधिक जिनके है, उन पुरुषों के मन माता ।। दर्शन ज्ञान चरित्र स्वरूपी, मारग तुमने दिखलाया । यही मार्ग हितकारी सवका, पूर्व ऋषीगणने गाया ॥३॥