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जैनघालवोधक
शांतिपाठ विसर्जन । शांतिनाथमुख शशि उनहारी, शील गुणवत संयपधारी। लखन एकसौ आठ विराज, निरखत नयन कमलदल लाज।। पंचम चक्रवर्ती पदधारी, सोलम तीर्थकर सुखकारी । इंद्र नरेंद्र पूज्य जिननायक, नमों शांति हित शांति विधायक। दिव्य विटप पहुपनकी वरसा, दुंदुभि आसन वाणी सरसा छत्र चपर भामंडल भारी, ये तुव प्रातिहार्य मनहारी ॥३॥ शांति जिनेश शांति सुखदाई, जगन पूज्य पूजौं शिरनाई । परम शांति दीजे हम सबको, पढ़ें तिन्हैं पुनि चार संघको ।।
वसंततिलका। पूजें जिन्हे मुकुटहार किरीट लाके ।
इंद्रादि देव अरु पूज्य पदान जाके । सो शांतिनाथ वर वंश जगत्प्रदीप । मेरे लिये करहिं शांति सदा अनुप ॥५॥
इंद्रवज्रा। संपूजकों को प्रतिपालकोंको। ___ यतीनको औ यतिनायकोंको ॥ राजा प्रजा राष्ट्र सुवेशको ले ।
कीजे सुखी हे जिन शांतिको दे ॥६॥
- संपरा ! होवै सारी प्रजाको सुखवलयुत हो, धर्मधारी नरेशा। होवे वर्षासमै पै तिलभर न रहै, व्याधियोंका अंदेशा ॥