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जैनवालवोधक ___तप १२, धर्म १०, पांचार ५, आवश्यक ६, गुप्ति ३, कुल ३६ गुण आचार्यमें होते हैं।। .. .. वारह तपोंके नाम । अनसन ऊनोदर करै, व्रत संख्या रस छोर । विविक्त शयन आसन धरै काय कलेश सुठोर ॥ १७॥ प्रायश्चित घर विनय जुत, वैयात स्वाध्याय । पुनि उत्सर्ग विचारकै, धरै ध्यान मन लाय ॥ १८ ॥
अनसन तप ( भोजनका त्याग ) १, जनोदर तपं (भूखसे कम खाना) २, व्रतपरिसंख्यान ( भोजनको. नाते समय घर वगेरहके नियम करना)३, रसपरित्याग (छहों रस या एक दो चार रसका त्यागना) ४, विविक्त शय्यासन ( एकांतमें सोना बैठना) ५, काय क्लेश (शरीरको कष्ट देना) ६ प्रायश्चित्त [दोषोंका दंड लेना] ७, स्नत्रय व रत्नत्रयधारियों का विनय करना ८, वैयावृत (रोगी या वृद्ध मुनियोंकी सेवा करना ) ९,स्वाध्याय करना १०, व्युत्सर्ग (शरीरसे ममत्व छोडना) ११, और ध्यान करना ये १२ तप हैं। इनमें से पहिलेके दै वाह्यतप हैं पीछेके ६ अभ्यंतर तप हैं ।। १७-१८ ॥
दश धर्मके नाम। छिमा मारदव पारनव, मत्य वचन चित पाग। . संयम तप त्यागी सरव, आकिंचन तिय त्याग ॥ १६ ॥