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जैनबालबोधक
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चोलना छोड दिया इसलिये में सच २ कहता हूं कि मैं राजाकी घुडशालामेंसे लाल रंगका घोड़ा ही चुराकर लाया था' । इतने ही में चौर पर फूलोंकी वर्षा होने लगी और आकाशवाणी (देववाणी हुई कि " वेशक व सच्चा है धन्य है तेरे सत्य व्रतको जो तुने अपने ऊपर मद्दा विपद आने पर भी रंचमात्र असत्य भाषण नहिं किया | घोडेका रंग तो हमने पलट दिया हूँ" ।
इस प्रकारकी आकाशवाणी सुनकर राजपुरुष चोरको राजाके पास ले गये और प्राकाशवाणीका सव हाल कह सुनाया तो राजाने उसके सत्य व्रत पर प्रसन्न होकर वह अपराध क्षमा कर दिया और कई लाख रुपयोंक ग्रामादि देकर अपनी पुत्रीके साय विवाह करलेने को भी कहा । चोरने कहा कि " महाराज आपने ये सब इनाम तो दिये परंतु में अभी ग्रहण नहीं कर सकता क्योंकि जिस व्रतक प्रभावसे एकही दिनमें ऐसा ऐश्वर्य मिला तो सबसे पहिले उन मुनि महाराजके पास जाकर और भी कोई व्रत ग्रहण करूंगा" इस प्रकार कहकर वह मुनि महाराजके पास गया और उनके धर्मोपदेशसे हिंसा चौरी फूड कुशील व परिवह इन पांचों पापोंका सर्वेया त्याग करके पांच महाव्रत धारण कर मुनि होगया और महा तपस्या करके स्वर्गको गया ।
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