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तृतीय भाग। महाराजके पास हाथ जोड. नमस्कार करके कहने लगा कि महाराज श्रापने सबको धर्मोपदेश देकर सबको कल्याणकारक त्याग-ग्रहण कराया सो मुझे भी कोई उपदेश दीजिये अथवा कोई प्रतिज्ञा दीजिये कि जिससे मेरा भी कल्याण हो। .
. मुनि महाराजने कहा कि तू कौन है। तेरी आजीविका (धंदा ) क्या है ? चौरंने कहा कि महाराज ! मैं चोर हूं चोरी करना ही मेरी आजीविका है। तब मुनि महाराजने कहा कि-अच्छा हम चौरी छोडनेको (जो कि महा अ. कल्याणकारी है ) तौ नहिं कहते परन्तु तुम झूठ बोलने का त्याग कर दो। . . . यह सुनकर चौरने कहा कि-महाराज यह व्रत तो में पाल सकता हूं सो चाहे जो हो जाय में आजसे कभी झूठ नहिं वोलूंगा। ऐसी प्रतिज्ञा करकें मुनि महाराजको नमस्कार, करके चला गया। संध्या होने पर वह चौर अंधेरी रातमें राजाकी घडशालामेंसे एक घोड़ा चुरानेकी इच्छासे गया । वहां दरवाजे पर जाते ही द्वारपालने पूछा कि तू कौन है ? चौरने झूठ बोलना छोड दिया था अतः लाचार होकर कहना पड़ा कि " मैं चोर हूं " । द्वारपालने ठहा समझ कुछ नहिं कहा, आगे जाने दिया । भागे जाने पर किसीने फिर पूछा कि तू कौन है ? तब चौरने भी कह दिया कि 'में चोर हूं' पूछनेवालेने. समझा कि यहींका