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तृतीय भाग ! .. २६ नियम करले कि भोजन पान वस्त्राभूषणादिक मोंग उपभागों में विलासिता । चाह ) नहिं करना। .
तप-शरीर और कषायों को कुश करनेके लिये जो क्रिया की जाय उसको तप कहते हैं। जैसे आज मैं एक ही वार भोजन करूंगा, अथवा एक या दो अथवा अमुक ही रस खाऊंगा, या उपबाम करूंगा । अथवा आज मैं भूख से प्राधा या चौथाई भोजन कम करूंगा या सापायिकके सपय कामोत्सर्ग करूंगा या वियों वा गुरु जनोंकी इतनी देर तक सेवा करूंगा इत्यादि रोज नियम करनासो तप है।
दान-अभयदान, माहार दान, विद्या दान, वा औषधि दान ये ४ प्रकारके दान है। मुनि, अहलक तुलक, ब्रह्मचारी आदि त्यागी पात्रोंको नवधा भक्ति भादि प्रादरपूर्वक आहार या औषधि या शास्त्रोंका दान करना । यदि इनकी नित्य प्राप्ति न हो तो किसी भी धर्मात्मा जैनी भाईको भा. दरपूर्वक प्रत्युपकारकी वांछा नहिं रखके जिमाकर भोजन करना अथवा करुणा करके गरीव भिखारियोंको कुछ भी खानेको देकर भोजन करना अथवा कमसे कम भोजन करनेसे पहिले वा पीछे कुछ भोजन अलग कर देना चा छोड देना जो कि कुत्ते गाय बैलोंको दिया जा सके। इसीप्रकार औषधिका सबको या दो चार जनोंको नित्य दान, करना । वा किसी असमय विद्यार्थीको पुस्तक देना या.! किसीको दया करके रोज रोज अढा देना, तथा कोई।