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जैनवालवोधकदचा) मेढकको अपने ऊपरसे फटकार दिया, परन्तु फिर भी वह मा लिपटा और उसे चाटना शुरू कर दिया उसने कई वार अपनेसे अलग किया परंतु वह चार २ उसीके शरीर पर पाकर चाटने लगा । सेठानीने विचार किया कि यह मेरा कोई स्नेही मालूम पडता है जिससे वार र आकर मेरा पीछा नहीं छोडता है। वह वहांसे चलकर अवधिज्ञानी सुव्रत मुनिके पास गई और भक्तिसे नमस्कार कर पूछने लगी कि महाराज मेहकका जीव पूर्वमवमें मेरा कौन था,, जिसने आज मेरे ऊपर बडास्नेह दर्शाया है । मुनि महाराज ने सव वृत्तांत कह सुनाया कि यह मेढक तुम्हारे स्वामी नागदत्त सेठका जीव है जो पूर्वभवका स्मरण करके तुम्हारे ऊपर इतना प्रेम जता रहा है.। यह सुनकर भवदत्ता मुनिको नमस्कार कर चल दी और घर आकर उस दिनसे उत्त मेढकको अपने पतिका जीव समझकर आनंदसे रखने लगी। एक वार महावीर स्वामीका वैभारपर्वत पर भागमन सुनकर राजा श्रेणिकने नगरमें आनंद भेरी वजवा दी और पुरवा. सियोंके साथ वैभार पर्वतार बर्द्धमान स्वामीके दर्शनके लिये जा पहुंचा। सेठानी भवदचा भी बडे हर्षके साथ गई जब मेढक को यह खबर लगी तो वावडीमेंसे एक कमल मुंहमें दवा. कर भगवानकी पूजाके लिये चल दिया रास्तेमें बडे भा. ल्हादके साथ जा रहा या कि हावीके पैरसे दबकर मरगया और पूजाके भावोंके कारण सौधर्म स्वर्गमें बढी ऋद्धिकाधारी