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जैनबालबोधकजीना चहना, मरना चहना, डरना, मित्र याद करना । भावी भोगवांछना करना, हैं अतिचार इन्हें तजना ॥९॥
तत्पश्चात् शोक दुःख भय अरति कलुषता विषादको तजकर उत्साहपूर्वक शास्त्रसुधामृत पीते रहना और भोजन छोडकर क्रमसे दूध पीये, दूध छोडकर, छाछ कांजी, व छाछ कांजी छोडकर फक्त गर्म पानी पीकर ही रहै जब मरण अत्यंत निकट हो जावे तब गर्म पानी भी छोडकर उपवास धारण करके समताभावोंसे नाशवान शरीरको छोड देवै । इसप्रकार समाधिमरण करते समय जीनेकी इच्छा करना, परनेकी इच्छा करना, मरनेका भय करना, मित्रादिकोंका स्मरण करग और आगामी भोगोंकी वांछा करना ये पांच अतीचार हैं सो इनको भी त्याग कर देना चाहिए ।। ९४-९५ ॥
सल्लेखना धारण करनेका फल व मोक्षका स्वरूप । जिनने धर्म पिया है वे जन, हो जाते हैं सब दुखहीन । तीररहित दुस्तर नियन,-सुखसागरको पियें प्रवीन ।। जहां नहीं है शोक दुःख भय, जन्म जरा वोपारी मोत । है कल्याण नित्य केवल सुख, पावन परमानंदका श्रोत ॥१६॥
जिनने धर्मामृत पान किया है वे समस्त दुखोंसे छूट जाते हैं और अपार दुस्तरं उत्कृष्ट मोक्षके सुखसमुद्रका सुखामृत पान करते हैं । मोक्षमें किसी प्रकारका शोक दुःख भय