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जैनबालबोधक
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वृषभसेना के स्नान जल से भरे हुए गड्ढे में एक रोगी कुत्तेको गिरा हुवा देखा । जैसे ही कुत्तेका शरीर जलसे भीगा किकुत्तेका विल्कुल रोग चला गया और सुदर शरीर बनगया यह देखकर रूपवती, वृषभसेनाका स्नान जल ही आरोग्य का कारण समझकर थोडासा जल अपनी मांके पास ले गई और आंखोंको लगा दिया, लगातेही बारह वर्षकी धुंद चली गई और उसे खूब दीखने लगा अब तो यह दासी प्रत्येक रोगमें उसी जलको काममें लाने लगी और सारे नगर में प्रसिद्ध हो गई । एक समय उग्रसेन राजाने बहुत सेना लेकर रणपिंगळ मंत्री को अपने वैरी राजा मेघपिंगल पर भेजा । रणपिंगलने जाकर उसके नगरको घेर लिया, परंतु मेघपिंगलने दुष्टता के साथ कुओंके जलोंमें विष डाल दिया जिससे रणपिंगल बीमार पड गया और सेनाके साथ घर लौट आया परंतु वृषभसेना के स्नान जलसे तंदुरुस्त हो गया । मेघपिंगलकी ऐसी दुष्टता सुनकर राजा उग्रसेनं सेना लेकर स्वयं जा चढे, परंतु वही हाल इनका भी हुवा इसलिये वे भी अपने देशको लौट आये, और बहुत बीमार पड गए | परंतु रणपिंगलसे जब राजाने वृषभसेना के स्नान जलकी तारीफ सुनी तो उसी समय जल लेनेके लिए आदमी भेजा, इसे. माया हुवा देखकर धनश्रीने छापने पतिसे कहा कि अपनी पुत्रीका स्नान्जल राजाके शिरपर छिड़कना अच्छा नहीं हैं । सेठने कहा- इसमें अपना कोई दोष नहीं है । यदि राजा