________________
जैनवालबोधक
-२२४
को आहार दान दिया जिसकी उन दोनों रानियों और सत्यभामा ने वडी अनुमोदनाकी, श्रीषेण राजा उस दानके 'प्रभाव से मरकर भोगभूमिमें पैदा हुए और उन दोनों रानियों - च सत्यभामाने भी अनुमोदना से वहीं पर ( भोगभूमि ) दिव्य सुखको प्राप्त किया और श्रीषेणराजा वहांसे च्युत होकर मनुष्य व देवके भवोंको प्राप्तकर अन्तमें शांतिनाथ तीर्थकर हुए । ठीक है - जो आहार दानकी अनुमोदना से भोगभूमि यादिके सुखको प्राप्त कर मोक्ष सुखकी प्राप्ति कर लेता है तो चाहार दान देनेवालेको अन्य सुखोंकी प्राप्ति हो जाये तो आश्चर्य क्या है |
६५. गुरु शिष्य प्रश्नोतर |
04:0:-80
-
गुरु — कहो मोतीलाल ! तुम कल सामको पढनेके लिये क्यों नहीं आयें 8
शिष्य – गुरुजी कल हमारी विरादरीमें एक विवाह था उसमें जाना पडा इस कारण थाना नहि हुआ। मुझे मालूम नहीं थी कि - विवाह में जाना पडेगा, नहीं तो मैं आप से माज्ञा लेकर ही जाता । लाचार पिताजी के आग्रहसे जाना • पडा सो अपराध क्षमा करें।
.
; ::.
*
गुरु-कौनके यहां व्याह या कन्या दाताका क्या नाम है ?
,