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जैनवालबोधक. ६४. श्रीषेण राजाकी कथा
___ मलय देशके रत्न संचयपुरमें श्रीषेण राजा राज्य करते थे जिनकी स्त्रीका नाम सिंहनंदिता था और दूसरोका अनि. दिता, उनके क्रमानुसार इंद्र और उपेंद्र दो पुत्र थे, वहींपर सात्यकि ब्राह्मण रहता था जिसकी स्त्री जंबू और पुत्री सत्यभामा थी। पटना में रुद्रभट्ट ब्राह्मण बालकोंको वेद पढाया करते थे जव वेदका पाठ चलता था उसी समय रुद्रभट्ट ब्राह्मणकी दासी (नौकरनी) का लडका कपिल वहीं पास में छुपकर वेद सुन लिया करता था। उसकी बुद्धि बड़ी तीक्ष्ण थी इसलिए थोडे दिनमें ही वेदका ज्ञाता हो गया । जब यह खबर रुद्रभट्टको लगी तो वह बड़े नाराज हुए,. और उसी समय वहांसे कपिलको निकाल दिया, वह वेद तो पढ ही चुका था पर जातिका शूद्र होनेसे उसने यज्ञोपवीतः धारण कर लिया और ब्राह्मण वनकर रत्नसंचयपुर नगरमें पहुंचा, रत्नसंचयपुग्में वास करनेवाले सात्यकिने जब इसे देखा तो विचाटने लगा कि यह वेदका विद्वान और सुंदर है इसलिये अपनी लडकी सत्यभामाका इसीके साथ विवाह कर देना चाहिये और उसने वैसा ही किया। अब यह अपने दिलमें वटा खुशी हुआ और सत्यभामाके साथ भोगविलास करने लगा परंतु रात्रि समयमें इसकी विटचेष्टा देखकर उसे