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________________ . . . तृतीय भाग। १६५ .... नियम करनेकी विधि। ... भोजन वाहन शयन स्नान, रुचि, इत्र पान कुंकुम लेपन । गीत चाय संगीत काम रति, मालाभूषण और वसन॥ इन्हें रात, दिन, पक्ष मास या, वर्ष आदि तक देना त्याग । कहलाता है 'नियम' और 'यम',आजीवनइनका परित्याग ।। ___ भोजन, सवारी, शयन, स्नान, कुंकुमादि लेपन, इत्रपान, गीत वाद्य संगीत, कामरति, माला भूषण आदि वि. 'षयोंका घडी, पहर, एक दिन, एक रात, एक पक्ष, एक मास, दो मास, छह मास, वर्षे आदि तककी मर्यादा करके स्याग देना सो नियम है और यावजीवन किसी विषयको -त्याग देना सो यम है ॥ ७१ ॥ भोगोपभोगनतके पांच अतिचार । विषय विषोंका आदर करना, मुक्त विषयको करना याद। वर्तमानके विषयोंमें मी, रचे प्रचे रहना अविषाद ।। आगामी विषयों में रखना, तृष्णा या लालसा अपार।। विन भोगे विषयों का अनुभव, करना, ये भोगातीचार ।। विषयरूपी विषोंमें श्रादर रखना, पूर्वकालमें भोगे हुये विषयोंका स्मरण रखना या करना, वत्तमानके विषय भोगने में अतिशय लालसा रखना, भविष्यतमें विषयमाप्तिकी अतिशय ष्णा रखना, विषय नहिं भोगते हुये भी विषय भोगता हूं ऐसा अनुभव करना ये पांच भोगोपभोग परिमाण जतके अतिचार हैं ।। ७२ ॥
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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