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________________ तृतीय भाग। और सब उससे कहकर राजासे मी निवेदन किया । राजाने कोतवालको मारनेसे वचा दिया और उस तापसी चौरको उसी समय पकडवा कर फांसी पर लटका दिया। वह आत ध्यानसे मर कर दुर्गतिमें गया । जो मनुष्य छलसे जारी वेश धारण कर चौरी आदि कुकर्म करते हैं उनकी तापसी चौरकी तरह दुर्दशा होती है। . ५३. श्रावकाचार सप्तम भाग। • मोगोपभोगपरिमाणमत । इंद्रिय विषयोंका प्रतिदिन ही, कमकर राग धग लेना। है व्रत भोगोपभोग परिमित, इसकी ओर ध्यान देना ॥ . पंचेंद्रियके जिन विषयोंको, भोगि छोड देव हैं-भोग। . जिन्हें भोगकर फिर भी भोगे, मित्रो वे ही हैं उपमोग।। रागादि भावोंको घटानेके लिये परिग्रह परिमाण व्रत की मर्यादामें भी प्रयोजनभूत इंद्रियोंके विषयोंका प्रति दिन परिमाण (संख्या) कर लेना ( रखलेना) सो भोगापमोग परिमाण व्रत है । भोजन वस्त्रादिक पंचेंद्रियके जो विषय एक ही वार भोगनेमें आर्दै उनको तो मोग कहते हैं और जो वस्त्रादिक विषय वारवार भोगने में भावे उनको उपभोग कहते हैं ।। ६८ ॥ . . . .
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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