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तृतीय-भाग-1 कवाय जीतनेका उपाय। ..
- मत्तगयंदा छेम निवास छिमाधुवनी विन, क्रोष पिशाच उरें नटरंगो। कोमल भाव उपाव विना, यह मान महामद कौन हरेगो॥ ऑर्जवसार-कुठार विना; छलवेल निकंदन कौन करेंगी। मेषशिरोमनि मंत्र पठेविन, लोमणी विप क्यों उतरंगो ६
मिटवचन बोलनेका उपदेश काहेको चोलत वोल पुरे नर,नाहक क्यों जस धर्म गुमायें । कोमल वैन चै किन ऐन, लगै कछु हैन मवै मन भावे ।। तालु छिदै रसनानमिदन घटै कछु अंक दरिद्र न आवे । जीभ कहे निय हानि नहीं, तुम जी सब जीवनको सुख पावै।।
धैयधारण करनेका उपदेश ।
कवित मनहर पायो है अचानक भयानक असाता कर्म,
ताके दूर करवेको बली कोन अहरे । जे जे मन भाये ते कमाये पूर्व पाप आप,
तेई अब आये, निज उदैकाल लहरे ॥ rक्षमारूपी धूनी । ५ आर्जव (सरलता) रूपी पोलाद कुल्हाडीके विना'। ६ संतोषरूपी उत्कृष्टमंत्र । ७ लोम रूपी सर्पका जहर । ८ बोले । ९ क्यों नहीं । १० अच्छे ११ प १२ जीम कहती है कि हे जीव मिष्टपचन . बोलने में तेरी कुछ हानि नहीं है और सब जीवोंका जी सुस पाता है।
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