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________________ तृतीय भाग । १६५ मुझे कोई बुलानेको भाने तो कह देना कि- " वह ग्रामान्तर गया है ।" उसने राजभृत्योंके पूछनेपर वैसा ही कह दिया राजभृत्योंने कहा कि "देखो माग्यहीनता ( कमनसीची ) इसको कहते हैं कि आज राजपुत्रके मारनेमें इस चंडालको हजारोंका गहना मिळता, उमर भरके लिये निहाळ होजाता परन्तु भाग्य में वही जंगली जीवोंको मारकर उपर भर दुःखपाना लिखा है इसीकारण आज गांवको चला गया ।" : इसप्रकार राजभृत्योंके वचन सुननेसे चंडालिनीको लोभने चुप नहि रहने दिया और उसने हाथका इशारा करके यमपालको बता दिया. राजभृत्योंने उसे पकडकर राजाज्ञा सुनाई कि इस राजपुत्रको मार डालो | यमपालने कहा कि आज चतुर्दशी के दिन में जीवहिंसा नहिं कर सका लाचार राजभृत्योंने उस चंडालको राजाज्ञालोप करनेके अपराध में राजा के सम्मुख उपस्थित (हाजिर ) किया । राजाने उससे कहा कि "क्यों वे ! तू मेरी आज्ञाको नईि मानता ?" चंडाल ने कहा- हजूर ! मैं सर्पके दंशन से मरा हुआ मसान भूमि में पडा था. एक मुनिमहाराजके शरीरकी हवासे में जीवित हो गया । उन महात्मासे मैंने यावज्जीव हर चतुर्दशी के दिन हिंसा करना छोड दिया है. सो आप चाहें मुझे भी शूलीपर घर दें - परन्तु मैं प्राज किसी भी जीवको मारकर मुनिमहाराजके दिये हुये अहिसात्रतको मंग नहि कर सक्ता.. राजाने लाचार होकर हुकुम दिया कि "इस चंडाल और
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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