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तृतीयं भाग। हिंसा मिथ्या चौरी मैथुन, और परिग्रह लीजे जांच ।। इन सबसे विरक्त हो जाना, म्यग्ज्ञानीका चारित्र । प्रकल विकल के भेद भावसे, धरें इसे मुनि गृही पवित्र ४३
मोहतिमिरके ( दर्शन मोहनीके ) हट जानेपर सम्य. ग्दर्शन सम्यग्ज्ञानकी प्राप्ति के पश्चात् रागद्वेषकी निवृत्तिके लिये सम्यग्दृष्टी सम्यकचारित्रको धारण करता है क्योंकि रागद्वेषके नष्ट हो जानेपर हिंसा असत्य चौरी कुशील
और परिग्रह ये पांच पाप नहिं रहते और इन पांच पापोंसे विरक्त होनेको ही सम्यक चारित्र कहते हैं। वह चारित्र सकल विकलके भेदसे दो प्रकारका है। सकल चारित्र मुनिका होता है, विकल चारित्र गृहस्थका होता है॥४३॥
विकल चारित्रके मेद। वारह भेद रूप चारित है, गृही जनोंका तीन प्रकार। पांच अणुव्रत तीन गुणवत, और भले शिक्षात चार । क्रमसे सभी कहो, पर पहिले, पांच अणुव्रत बतलादो। उनका पालन करना सारे, गृही जनोंको सिखलादो ४४
श्रावकका चारित्र वारहवत रूप है पांच अणुव्रत तीन गुणव्रत शिक्षात ये तीन भेद हैं । सो कमसे कहे जाते हैं।॥४४॥