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जैनवालबोधक
३७ सुंदर दृश्य ।
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चित्तका सदैव प्रसन्न रहना शरीरकी स्वस्थता ( तंदुरुहती ) का प्रधान कारण है । क्योंकि संसारमें अनेक प्रकारकी चिताओं और अन्यान्य कारणोंसे मनुष्य के चिधर्मे विकलता, ग्लानि वा बालस्य हो जाता उस समय चिचको प्रसन्न करेनेके निमित समस्त इंद्रिये अपने २ विषयको प्राप्त करनेके लिये इधर उधर दौड़ती हैं । यदि उस समय आवश्यकीय विषयकी प्राप्ति न हो तो शरीरको बढी भारी हानि पहुंचती है। पांचों इंद्रियोंमेंसे प्रथम ही हमारी नेत्र इंद्रिय सुदृश्य पदार्थको देखनेके लिये व्याकुळ होती है । इस कारण उस समय नेत्रोंके संमुख अवश्य ही सुंदर दृश्य पदार्थोंका होना आवश्यक है क्योंकि उस समय नेत्रोंकी व्याकुलता दूर न करनेसे अथवा नेत्रोंके संमुख असुंदर पदार्थों के होनेसे चितकी ग्लानि और भी बढ जायगी जिससे मानसिक पीडा बढनेसे शारीरिक क्रियामें भी व्यालघंन हो जायगा अर्थात् शरीर और चित्तका ( मनका ) घनिष्ट संबंध होनेसे शरीर में रोगोत्पत्ति हो जायगी । चित्तकी प्रसन्नतासे शरीर में रक्तकी अधिकता होना ही स्वास्थ्य ( निरोगता ) है इस कारण नेनेंद्रिय को सुंदर दृश्य पदार्थोके अवलोकनकी अत्यंत आवश्यकता
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