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तृतीय भाग।.
सप्तव्यसन। दोहा । जूपाखेलन मांस मद, वेश्या विसन शिकार । चोरी पररमनी रमन, सावो पाप निधार ॥६॥
जुवानिवेष उप्पय । सकल पाप संकेत, भापदा हेत कुलच्छन । कलह खेत दारिद्र देत, दीसत निज अच्छन । गुनसमेत जस सेत, के.तेरवि रोकत जैसे। ओगुननिकर निकेत, लेत लखि बुधजन ऐसें ॥ जूमा समान इह लोकमें, पान अनीत न पेखिये। इस विसनरायके खेलको, कौतुक हू नहिं देखिये ॥४॥
मांस निषेप । छप्पय । जंगम जियको नाश, होय तव मांस कहावै । सपरस आकृति नाम, गंच उर घिन उपजावै ।। नरक जोग निर्दई, वांहिं नर नीच अधर्मी।
नाम लेत तज देत, असन उचम कुल कर्मी। पह निपट निंद्य अपवित्र अति, कृमिकलराशिनिवास नित । अमिष अमच्छ याको सदा, वरज्यो दोपदयालचित॥५॥ .. १ नेत्रोंसे । २ जैसे सूर्यको तुमहका विमान रोक देता है । ई अवगुणों के समूहका घर ४ एकेंद्रिय जीवको छोडकर बाकीके समस्त जीनोंको जंगम जीव कहते हैं। ५ भोजन ।