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जैनघालवोधकलगा कि-यह क्या बात है जो ऐसा करते हो । सोमदत्त प्राकाशगामिनी विद्याकी प्राप्तिका सव हालकह कर बोला कि मुझे सेठकी वातपर दृढ़ विश्वास ( श्रद्धान ) नहीं होता। ___चौरने कहा कि मुझे वह मंत्र बताओ मैं इसे सिद्ध करूंगा क्योंकि चौरके पीछे तौ राजपुरुष चले आरहे थे वे भी नौं पकडकर शुली देदेंगे इससे तो यही मंत्र यदि सिद्ध हो जायगा तो वचाव हो सकता है। सोमदत्तने णमोकार मंत्र सुनाया, इतनेहीमें राजाके सिपाही आते दीखे इसने कट पट पेडपर चढकर छींकेमें बैठकर निःशंक हो "णमो वाणु कछू न जानुं शेठ वचन परमाणु" इसप्रकार अथवा "ताण ताणं कछु न जाणं सेठवचन परमाणं" कह कर एक दमसे १०८ रस्सियें काट डाली। रस्सी काटते ही आकाशगामिनी विद्याने ऊपरका ऊपर ही उठालिया और फिर कहा कि-बोलो क्या आज्ञा है ? चौरने कहा कि जिनदत्त सेठके पास ले चल | जिनदत्व सेठ उस समय सुदर्शन मेरुके चैत्यालयमें दर्शन पूजनादि कर रहा था सो अंजन चौरने भी भावसहित दर्शन पूजन किये तत्पश्चात् जिनदत्तशेठको नमस्कार करकें विद्यासिद्धिका सव हाल कहकर बोला कि आपके उपदेशसे ही मुझे आकाशगामिनी विद्या सिद्ध हुई है अब आपही मुझे संसारसे पार उतरनेका उपदेश दीजिये शेठने मुनि और मृहस्य धर्मका उपदेश दिया। अंजनका चित्त मुनि धर्म अंगीकार करने में तत्पर हो गया तब चारण ऋद्धिके धारक मुनि