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जैनवालवोधकऐसे मनमें विचार रखना, लोकमूढता है प्रियवर ॥ २० ॥ . गंगा जमुना आदि नदियोंमें न्हानेसे, तथा बालू और पत्थरके ढेर करने अथवा पर्वतसे गिरने वा अग्निमें जलनेसे पुण्य होता है ऐसा मानना सो लोकमूदता है ।। २० !!
२। देवमूढता। दई देवताकी पूजा कर, मन चाहे फल पाऊंगा। मेरे होंगे सिद्ध मनोरथ, लाम अनेक उठाऊंगा। ऐसी आशायें पनमें रख, जो जन पूजा करता है।
रागद्वेष भरे देवोंकी, देवमूढता धरता है ॥ २१ ॥ - इसका अर्थ सीधा है लडके अपने आप अर्थ कह सकते हैं इसलिये नहि लिखा ॥ २१ ॥
३। गुरुमूढता। । नही छोडते गांठ परिग्रह, भाभको नहिं तजते हैं। भवचक्रोंके भ्रमनेवाले, हिंसाको ही भजते हैं ।। साधुसंत कहलाते तिसपर, देना इन्हे मान सत्कार । है पाखंडि मृढता प्यारो, छोडो इसकोकरो विचार ॥२२॥
आरंभ परिग्रह और हिंसाकेधारक संसार चक्रमें भ्रमण करनेवाले पाखंडी तपस्वियोंका आदर सत्कारादि करना सो गुरु मूढता है ॥ २२ ॥
आठ मद। मान जाति कुल पूजा ताकत, ऋदि तपस्या और शरीर। इन पाठोंका आश्रय करके, जो धर्मर करना मद वीर ॥