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तृतीय भाग.।
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प्रकारके छन्नेसे छानकर ताजा जल दो मुहर्च घंटे तक ) पीना चाहिये । अथवा उस छने हुए जल में लौंग इलायची वगेरह का चूर्ण डालकर काममें लाना चाहिये । क्योंकि छने हुए ताजे जलमें भी दो मुहूर्चके बाद जीव फिर उत्पन्न हो जाते हैं और जल वादीयुक्त हो अस्वास्थ्यकर हो जाता है। यदि चौमासेमें नदी तालाव आदिका मिट्टी मिला हुवा बहुत मैला जल हो तो उसमें थोडासा फिटकडी या निमलिका चूर्ण डालकर घंटे भरको रख देना चाहिये । जिससे गाद नीचे जम जायगी तव उपरका निर्मल जल दूसरे वर्जनमें छानकर ले लेना चाहिये, और उसमें लौंग आदिका चूर्ण डालकर अथवा गर्म करके दोय पहर तक वर्तना चाहिये । इसप्रकार जलको प्रासुक करके वर्तनेसे अनेक प्रकारके रोगों से बच सकते हैं. इसमें कोई विशेष प. रिश्रम नहिं है थोडासा परिश्रम करनेहीसे निर्मल प्रासुक. जलकी प्राप्ति हो सकती है।
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२६ । श्रावकाचार दूसराभाग।
सम्यक्त्वके आठ अंग तीनमूढता और आठमद ।
१ । निःशंकित अंग । तव यही है ऐसा ही है, नहीं और नहिं और प्रकार । जिनकी सन्मारगमें रुचि हो, ऐसी मनो खड्गकी धार