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प्रथम अध्याय . अंगशास्त्र का परिचय
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गमन (टूटे हुए वृक्ष की तरह चेष्टारहित होकर अनशन करना), देवलोक-गमन, सूकुल में जन्म, प्रत्यागमन, सम्यक्त्वधर्म की प्राप्ति और अंतक्रिया (निर्वाण प्राप्ति) का वर्णन है।'
उपासकदशांग-यह सातवाँ अग है । इसमे श्रमणोपासको (साधुओ के सेवक श्रावको) के नगर-उद्यानादि, भोगो का परित्याग, श्रावक दीक्षा,श्रावक अवस्था का काल प्रमाण, श्रुतग्रहण, तप-उपधान, शीलव्रत, अणुव्रत, गुणव्रत, प्रतिमा, उपसर्ग (कष्ट), सल्लेखना, भक्त-प्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोकगमन, पुनः मनुष्य भव मे सुकुल की प्राप्ति, सम्यक्त्व धर्म की प्राप्ति और अन्तक्रिया आदि का वर्णन है । इस अग में एक श्रुतस्कन्ध तथा दस अध्ययन है।'
अन्तकृत्दशांग-यह आठवॉ अग है। इसमे अन्तकृत्-संसार का अन्त करने वाले मनुप्यो के नगरादि, भोगपरित्याग, प्रव्रज्या (मुनिदीभा), श्रुतग्रहण, तप-उपधान, सल्लेखना, अन्तक्रिया आदि का वर्णन है । इसमें एक श्रुतस्कन्ध तया आठ वर्ग है।३
अनुत्तरौपपातिकदशांग-यह नवा अग है। इसमें अनुत्तरीपपातिक-अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने वाले जीवो के नगरादि तथा निर्वाण प्राप्ति का वर्णन है। इसमें एक श्रुतस्कन्ध तथा तीन वर्ग है।
प्रश्न-व्याकरणांग-यह दसवा अग है। इसमे एक श्रुतस्कन्ध तथा १० अध्ययन है। हिसा, असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रहरूप आत्रवद्वारो तथा अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रहरूप संवर द्वारो का इसमें विस्तृत वर्णन है। नदीसूत्र तथा समवायाग के अनुसार इसमे उन प्रश्नो-विद्याओ ( अगुप्ठप्रग्न, अगुष्ठविद्या, वाहुप्रग्न, आदर्गप्रश्न आदि ) का वर्णन है, जो केवल जप-मात्र से पूछे गये, विना पूछे गये तथा उभयरूप प्रश्नो के उत्तर देती है। इन
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१ ममवायाग, १४१, नदीसूत्र ५० २ वही, १४२ तथा वही, ५१ ३ वही, १४३ वही, ५२ ४ वही, १४४ वहीं, ५३
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