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सप्तम अध्याय • ब्राह्मण तथा श्रमण-सस्कृति
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शक्ति के अनुसार इन कलाओ मे दक्ष होना प्रत्येक छात्र का उद्देश्य होता था।
ये ७२ कलाएँ निम्न प्रकार है-१ लेह (लेख), २. गणिय (गणित), ३ पोरेकन्छ (कविता बनाना), ४ अज्जा (आर्यावृत्त का ज्ञान), ५.पहेलिया (पहेलियों का ज्ञान), ६ मागधिया (मागधी भाषा मे कवितानिर्माण), ७ गाहा (गाथा वृत्त मे कवितानिर्माण) ८ गीइय (गीतो का निर्माण), ह. सिलोय (श्लोको का निर्माण), १०.रूव (मूति-निर्माण-कला) ११ नट (नृत्य), १२ गीय (गायन), १३. वाइय (वादित्र), १४ सरगम (सरगम), १५ पोक्खरगय (ढोलवादन), १६ समताल (ताल का ज्ञान), १७. दगमटिय्य (मृत्तिका विज्ञान), १८. जूय (धूत), १६. जणवाय (विशेष प्रकार का द्य त), २० पासय (अक्षय त) २१. अट ठावय (शतरंज), २२ सुत्तखेड (कठपुतली विज्ञान), २३. वत्थ (भौरे का खेल), २४ नालिका खेड (पासो का खेल), २५ अन्नविहि (भोजन विज्ञान), २६ पाणविहि (पानकविज्ञान), २७ वत्थविहि (वस्त्रविज्ञान), २८. विले वणविहि (विलेपन विज्ञान), २६ सयणविहि (शय्याविज्ञान), ३०. हिरण्यजुत्ति (चादी के आभूषणो का विज्ञान), ३१ सुवण्णजुत्ति (सोने के आभूषणो का विज्ञान), ३२ चुण्णजुत्ति (चूर्णविज्ञान), ३३. आभरण विहि (आभरण-विज्ञान), ३४. तरुणी पडिकम्म (युवती-विज्ञान), ३५ पत्तच्छेज्ज (पत्र-छेद द्वारा आभूषणो के प्रकार बनाना), ३६ कडच्छेज्ज (मस्तक को सजाने का विज्ञान), ३७ इत्थिलक्खण (स्त्री लक्षण-विज्ञान), ३८ पुरिसलक्खण (पुरुषलक्षण-विज्ञान) ३६ हयलक्खण (अश्वलक्षणविज्ञान), ४० गयलक्खण (गजलक्षणविज्ञान), ४१ गोलक्खरण (गो लक्षण विज्ञान), ४२ कुक्कडलक्खण (मुर्गी लक्षण) विज्ञान) ४३ छत्तलक्खण (छत्रलक्षणविज्ञान), ४४ दण्डलक्खण (दण्डलक्षणविज्ञान), ४५ असिलक्खड (असिलक्षणविज्ञान), ४६. मणिलक्षण(मणिलक्षणविज्ञान), ४७ काकिणीलक्खण (काकिणी-रत्नलक्षण विज्ञान), ४८ सउणरुय (पक्षियो की बोली का विज्ञान), ४६ ५०. चारपडिचार (गृही के चलन तथा प्रतिचलन की विद्या), ५१. सुवण्णपाग (सुवर्ण बनाने की विद्या), ५२ हिरण्णपाग (चॉदी बनाने की विद्या), ५३. सज्जीव (नकली धातुओ को असली धातु मे परिवर्तित करने की विद्या), ५४. निज्जीव (असली धातुओ को नकली धातु मे परिवर्तित करने की विद्या), ५५. वत्थु विज्जा (गृहनिर्माणविज्ञान), ५६-५७ नगरमाण