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सप्तम अध्याय . ब्राह्मण तथा श्रमण-संस्कृति
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ने गौतमबुद्ध के समय से ही विहारो के बनवाने का उत्तरदायित्व लिया। ऐसी परिस्थिति में विहारो का राजप्रसाद के समकक्ष होना स्वाभाविक ही था । प्रारम्भ मे विहार सादे होते थे पर धीरे-धीरे वे सुसंस्कृत बनने लगे ।
श्रावस्ती के " जेतवन" विहार का निर्माण अनाथपिंडक ने गौतम - बुद्ध के जीवनकाल मे कराया था । इसमे १२० भवन और अनेक शालाएँ थी । उपदेश देने के लिए, समाधि लगाने के लिए तथा भोजन करने के लिए पृथक-पृथक शालाएं निर्धारित थी। साथ ही स्नानागार, औषधालय, पुस्तकालय, अध्ययनकक्ष आदि बने हुए थे । पुस्तकालय में बौद्धधर्म की पुस्तको के अतिरिक्त अन्य विचारधाराओं के ग्रन्थो का का भी संग्रह किया गया था । उसमे अनेक जलाशय भी बनाए गए थे । १
अध्ययन के विषय - वैदिक-शिक्षण के आदिकाल से ही ऋग्वेद का अध्ययन और अध्यापन सर्वप्रथम रहा । वेद के अतिरिक्त वेदाग, शिक्षा कल्प, निरुक्त, छन्द, व्याकरण तथा ज्योतिप का महत्व भारतीय विद्यालयो मे सदैव रहा है । इनका अध्ययन और अध्यापन वैदिक काल मे ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से होने लगा था । छान्दोग्य उपनिषद् मे तत्कालीन अध्ययन के विपयो की एक सूची इस प्रकार मिलती है - "चारो वेद, इतिहास - पुराण, वेदो का वेद (व्याकरण), पित्र्य ( श्राद्ध-यज्ञ), राशि (गणित), दैव (भौतिक- विधान), निधि ( काल - ज्ञान), वाको - वाक्य (तर्क), एकायन (नीति), देव विद्या ( शिल्प तथा कलाएँ) ।
भगवतीसूत्र (२१) तथा औपपातिक - दशासूत्र (३२ p. १७२) मे अध्ययन के विषय निम्न प्रकार बतलाए गए है-छह वेद, छह वेदांग तथा छह उपाग ।
छह वेद इस प्रकार है - १ ऋग्वेद, २ यजुर्वेद, ३ सामवेद, ४ अथर्ववेद, ५ इतिहास (पुराण) तथा ६ निघटु |
छह वेदांग इस प्रकार है - १. सखाण ( गणित ), २. सिक्खाकप्प ( स्वरशास्त्र) ३. वागरण (व्याकरण) ४ छन्द, ५ निरुक्त (शब्दशास्त्र)
१ वाटर्स, ह्व ेनसांग, भाग १, य०३८५, ३८६ ।
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छान्दोग्य उपनिषद्, ७, १,२ ।