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जैन अगशास्त्र के अनुगार मानन व्यक्ति का विकाग
जमीन की ओर सिर करके बांध दिया गया, उन गरीर ने मास काट
कर स्वय उसे खिलाया गया, उंग हजारो कोटीम पीटा गया और धन __ मे उसे फासी का दण्ड दिया गया।'
विजयवर्द्धमान नामक गांव में एक "क्या:" नामका बाबधामिन शासक था। वह पांच नी गांवो पर शासन करता था। यह प्रजा पर अत्यधिक अत्याचार करता, उन्हें मारता, गता, उनका पन छीन लेता, उनसे अनेक प्रकार के अनधिकृत टैक्स लेता तथा चोरों और वायुयो को सहायता देता था । उपयुक्त पापपूर्ण कार्य करते हुए इकाई को श्वास, कास, ज्वर, कुक्षिगूल आदि मोलह रोग उत्पन्न हो गये और उन रोगो से मर कर वह रत्नप्रभा नरक में एक नागर-प्रमाण की आय वाले नारकीरप में उत्पन्न हुआ। महावीर मे गौतम के पूछने पर उन्होंने इक्काई के भविष्य-जीवन का इस प्रकार वर्णन किय --
" . . वह सिंह का रूप धारण करेगा और इसके बाद मर कर प्रथम नरक मे नारकी होगा। वहाँ से निकल सरीसपी (पेट के बल रेंगने वाले सर्प आदि प्राणियो) मे उत्पन्न होगा। इसके बाद वह द्वितीय नरक मे, फिर तृतीय नरक मे, फिर चतुर्थ, पचम, पप्ठ तथा सप्तम नरक मे उत्पन्न हागा । फिर क्रम ने वह एकेन्द्रिय, हीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जीवो का शरीर धारण करता हुआ मनुष्यपर्याय को प्राप्त कर श्रमणधर्म का पालन करके आलोचना, प्रतिक्रमणपर्वक समाधिमरण को प्राप्त हो कर सीधर्मस्वर्ग मे देवल्प मे उत्पन्न होगा, वहाँ से निकल कर महाविदेह मे उत्पन्न हो कर अन्त में सिद्धि को प्राप्त करेगा।
उपयुक्त विवरण से स्पष्ट है कि महान् अधार्मिक मनुष्य भी धार्मिक कर्तव्यो का पालन कर देवत्व तथा सिद्धि-पद को प्राप्त कर सकता है। उपासक का जीवन-क्रम
किसी भी जाति अथवा वर्ण का गृहस्थ' स्त्रीपुरुप निर्गन्य प्रवचन मे श्रद्धावान् हो कर किसी साधुजन के समक्ष जव पाँच अगुव्रत तथा सात
१ विवागसुय १, २ २ विवागसूय १, १ ।