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प्राक्कथन पदार्थों के ज्ञान के लिए और उन का सम्यग्बोध करने के लिए आगमों में प्रमाण और नय ये दो मार्ग प्रतिपादन किए गए हैं। प्रमाण सर्वांशग्राही होता है । और नय, पदार्थ के देश धर्म को ग्रहण कर उसका वर्णन करता है वर्तमान युग में न्याय को दो शैलियां प्रचलित हैं, जैसे- प्राचीन न्याय, और नव्यन्याय । प्राचीन न्याय शब्दाडम्बर को छोड़ कर अर्थावबोधविशेष रहता है और नव्यन्याय में अर्थावबोध को अपेक्षा शब्दाडम्बर।
जैन, बौद्ध तथा वैदिक आचार्यों ने न्याय शास्त्र के बहुत से ग्रन्थ निर्माण किए हैं और उन पर टीका टिप्पण भी यथा बुद्धि किए हैं जो आज कल पाठशालाओं के पाठ्यक्रम में नियुक्त भी हैं । अस्तु, इस जटिल तथा दुरूह विषय के सम्बन्ध में मेरा य बहुत दिनों से यह विचार था कि जो विद्यार्थी न्यायकक्षा में न्याय अध्ययन कर रहे हैं
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