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जैन मान्कस् इन प्रोपोगेशन आफ अहिंसा' तथा डा० पी० एम० उपाध्ये का 'कन्सेप्ट आफ जैन मिस्टिसिज्म' इसी प्रकार के निबंध थे । इस प्रकार संगोष्ठी में जैन धर्म एवं दर्शन के सर्वाधिक निबन्ध पढ़े गये, जिनसे भारतीय दर्शन के कई पक्ष उजागर हुए हैं । इस विभाग के अधिवेशनों के अध्यक्ष थे डा० सत्यव्रत शास्त्री ( दिल्ली) एवं डा० गुलाबचंद्र चौधरी (वैशाली) तथा सचिव थे डा० एम० जी० धड़फले (पूना) एवं डा० नारायण समतानी (बनारस) ।
ललित कला एवं विज्ञान
संगोष्ठी के इस विभाग में कुल ग्यारह निबन्ध पढ़े गये । जैन धर्म का ललितकलाओं और स्थापत्य आदि के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान का विवेचन करते हुए प्रोफेसर कृष्णदत्त वाजपेयी ने मध्यप्रदेश की जैन कला का विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया। यहां की जैनकला एवं अवशेषों पर जो अध्ययन वहां हो रहा है तथा अपेक्षित है, इस सबकी जानकारी आपने दी। श्री रत्नचंद्र अग्रवाल का निबंध राजस्थान की जैन कलाकृतियों पर प्रकाश डालने वाला था । प्रोफेसर परमानंद चोयल ने 'जैन कला का योगदान' विषय पर अपना निबंध प्रस्तुत किया । प्रोफेसर ओ० डी० उपाध्याय ने जैन चित्रकला की सूक्ष्म विशेषताओं की ओर विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया । जैन मूर्तिकला पर डा० एस० एम० पहाड़िया का 'जैन मैटल इमेज' नामक एक ही निबंध संगोष्ठी में प्रस्तुत हुआ । 'जैनाचार्यों की संगीत को देन' विषय पर एक प्रतिनिधि लेख डा० सत्यव्रत शास्त्री द्वारा प्रस्तुत हुआ । प्रोफेसर शास्त्री ने जैन साहित्य के उन संदर्भों की चर्चा की, जो संगीत के क्षेत्र में नया प्रकाश डालते हैं ।
'जैन धर्म और आधुनिक विज्ञान' विषयक चर्चा संगोष्ठी में अधिक आकर्षक रही । डा० महावीरराज गेलड़ा ने 'द कन्सेप्ट आफ इनर्जी इन जैन लिटरेचर', डा० नंदलाल जैन ने 'कन्ट्रीब्यूसन आफ जैन्स टू केमिकल नालेज' तथा डा० एम० एस० मुडिया ने 'जैन फिलासफी एण्ड माडर्न साइंस' नामक निबंध पढ़े, जिन पर पर्याप्त विचार-विमर्श हुआ। प्रोफेसर लक्ष्मीचंद्र जैन ने 'इंडियन जैन स्कूल आफ मेथमेटिक्स : ए स्टडी इन चाइनीज़ इंफ्लूएंस एण्ड ट्रांसमिशन्स' नामक अपना महत्त्वपूर्ण निबंध भेजा । वे स्वयं उपस्थित होते तो इस निबंध पर अच्छी चर्चा होती । स्व० डा० नेमिचंद्र शास्त्री का 'जैनाचार्यों की व्याकरणशास्त्र को देन नामक निबन्ध प्राप्त करने का सौभाग्य भी संगोष्ठी को हुआ, किंतु वे स्वयं इसमें सम्मिलित न हो सके। इस अधिवेशन के अध्यक्ष थे डा० एच० सी० भयाणी (अहमदाबाद ) तथा सचिव थे डा० विमलप्रकाश जैन ( जबलपुर ) ।
संगोष्ठी का सिंहावलोकन : १५