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उदयपुर, जबलपुर, उज्जैन, सागर, बनारस, पटियाला, पूना, धारवाड़ आदि में प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में जैन धर्म एवं दर्शन, साहित्य तथा संस्कृति के विभिन्न पक्षों का अध्ययन अनुसंधान प्रारम्भ होगा। जैन विद्या की विश्वविद्यालयों में यह प्रतिष्ठा तथा पीठ स्थापना अन्ततः भारतीय ज्ञान-विज्ञान की गरिमा को प्रतिष्ठित करेगी तथा विश्वविद्यालय का समाज से, उसके धार्मिक एवं नैतिक स्पंदन से मूल्यवान् एवं सार्थक सम्बन्ध स्थापित करेगी । भारतीय शिक्षा की यह महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है ।
उदयपुर विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में देश के मूर्धन्य विद्वानों का अपूर्वं समवाय था । डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री, डॉ० गुलाबचन्द्र चौधरी तथा डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये का सहयोग एवं मार्गदर्शन इसे प्राप्त था । इस संगोष्ठी के शोध-पत्रों के अंग्रेजी तथा हिन्दी के प्रकाशन उन्हीं के सहयोग का परिणाम हैं । पर इस फल को देखने के लिए ये तीनों विद्वान अब इस संसार में नहीं हैं । अंग्रेजी पुस्तक के प्रकाशन के पूर्व ही डॉ० शास्त्री व डॉ० चौधरी का निधन हो गया था । अतः वह कृति उन्हीं को समर्पित है । पर किसे मालूम था कि इन्हीं में वरिष्ठ विद्वान डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये को भी कृतान्त हमसे छीन लेगा । प्रस्तुत कृति सादर एवं सविनय श्रद्धा के साथ उन्हीं को समर्पित है ।
कार्तिक अमावस्या, १९७५