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( 8 ) सरदार वायक को कन्या थी। धोरा के पुत्र वीरवर लोकविद्याधर इनके पति थे। पतिदेव के प्रेम में सरवार वह वीराङ्गना भी उनके साथ समरभूमि में लड़ाई लडने गई। घोडे पर चढं कर और तलवार हाथ में लेकर उसने बडी बहादुरी दिखाई। यहाँ तक कि वैरियों के सरदार के हाथी, पर इसके घोडे ने जाकर टाप लगा दी। इसी समय शत्रु का घातकभाला उसके मर्मस्थल के प्रार-पार हो गया। वह वीराङ्गना झट सँभल गई
और जिनेन्द्र भगवान का नाम जपती हुई स्वर्गधामको सिधार गई । उसके इस अमर कृत्य का दृश्य आज भी श्रवणवेलगोल के जैनमन्दिर में एक शिलापट पर अतित है, मानो वह अपनी बहिनों को वीरता और निशङ्कता का ही पाठ पढ़ा रहा है।
४-वस, आइये पाठक वृन्द, एक जैनवीराङ्गना के और दर्शन कर लीजिये । यह सरदार नागार्जुन की वीर पत्नी थीं। सरदार नालगोकंड का शासक था और एक पक्का जैनी था । भाग्यवशात् वह समाधिमरण कर गया। राजा अकाल' वर्ष ने उसका पद उसकी वीर पत्नी जक्रम को दे दिया। वह सुचारु रीति से शासन करने लगी। तब का शिलालेख कहता है कि 'यह बड़ी वीर थी, उतम युद्धशक्तियुक्ता थी और जिनेन्द्र-शासन भक्का थी।' अन्त समय के निकट में इसने अपनी पुत्री के सुपुर्द राज्य कर दिया और स्वयं एक जैनतीर्थ को जाकर शकान्द ८४० में समाधि ग्रहण कर ली।
इन वीराङ्गनाओं के नाम और काम के आगे भला बताइये,