________________
( ५७ ) थे। सन् १८०५ में इन्होंने भारी सरदार खान जान्ता खाँ को भटनेर के किले में घेर लिया। पांच महीने की लड़ाई के बाद ख़ान ने किला छोड़ दिया। महाराज ने प्रसन्न हो अमरचन्द्र को अपना दीवान नियुक्त कर लिया। सन् १८० में जोधपुर नरेश ने बीकानेर पर आक्रमण किया। श्रमरचन्द्र ही इस सेना से मोर्चा लेने गये । पपरी के मैदान में घोर युद्ध हुआ; किन्तु अन्त में सन्धि हो गई।
(३१) जोधपुर राज्य के वीर-श्रावक । जोधपुर के राजवंश से जैनधर्म का सम्पर्क रहा है। प्राचीन राठौड़ वीरों ने जैनधर्म को खूब अपनाया था, किन्तु जोधपुर-वंश में वह धात तो नहीं पर हॉ, महाराज रायपाल जी-पुत्र 'मोहनजी' का सम्बन्ध जैनधर्म से प्रमाणित है। इन्होंने जैनसाधु शिवसेन के उपदेश से जैनधर्म ग्रहण कर लिया था और अपना दूसरा विवाह एक श्रोसवाल जैनकन्या से किया था। इन्हीं की सन्तान मोहणेत पोसवाल जैनी है ।
मोहणेत श्रोसवालों में 'कृष्णदासजी' उल्लेखनीय वीर थे। कहने को यह महाराज मानसिंह के मन्त्री थे, परन्तु सच
४
-
-
* विशेष के लिए देखो "जनवीरो का इतिहास और हमारा पतन ।'