________________
( २७ )। जैन-मुनि (क्षपणक) का श्रादर करते थे। सम्राट् चन्द्रगुप्त के विरुद्ध यह दोनों वीर घडी बहादुरी से लड़े थे। किन्तु इसमें वह विजयी न हुये, बल्कि नन्दराज तो मारे गये और राक्षस को चन्द्रगुप्त ने अपने पक्ष में कर लिया।
(७) मौर्य साम्राज्य के जैन शूर। नन्दों के बाद मौर्य राजागण मगध साम्राज्य के अधिकारी हुए। यह सूर्यवंशी क्षत्री थे और इसके पहले इनका गणराज्य "मोरिय-तन्त्र" के रूप में हिमालय की तराई में मौजूद था। उस समय मोराख्य अथवा मोरिय देश में भगबान महावीर का विहार और धर्मापदेश कई बार हुआ था। उसी का परिणाम था कि उनमें से अनेक वीर पुरुप भगवान महावीर की शरण श्राये थे। भगवान महावीर के दो खास शिष्यवाणधर मौर्य ही थे।
इस मौर्यवंश के राजकुमार "चन्द्रगुप्त" ही मगध साम्राज्य के अधिपति हुए थे और यह सम्राट अपने नाम और काम के लिए न केवल भारतीय इतिहास में अपितु संसार के प्राचीन इतिहास में अद्वितीय हैं । चन्द्रगुप्त ने अपने वाहुवल से पेशावर से कलकत्ता और सुदूर दक्षिण की सीमा तक अपना राज्य फैला लिया था। इन राज्य को अन्य विशेष बातों