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वह न हुआ । इस लिये हमने सारे भारतवर्षके जैन तीर्थस्थानोंका तथा उन तीर्थस्थानोंपर जानेवाली रेलवे लाइनोंका नकशा भी छपवाया है, इससे उसको देखते ही सारे तीर्थस्थानोंका परिचय हो जायगा । ___ इस पुस्तकमें जिस तीर्थस्थानका विवरण दिया है उसमें पाठक शायद यह समझेंगे कि लेखक उन सव तीर्थोपर स्वयं गया होगा पर यह बात ठीक नहीं है, हमको जिस २ तीर्थोंका दर्शन करनेका अवसर मिला है उस पर * यह चिन्ह किया है बाकी 'अन्य सब तीर्थोंका वृत्तांत उस प्रांतके निवासियोंसे 'तथा जिन्होंने उन तीर्थ स्थानोंकी यात्रा की है, उन लोगोंसे पूछकर लिखा है, इसी कारण इसमें कहीं २ पर ठीक भी न लिखा गया होगा, दूसरे आजकल ब्रिटिश राज्यमें रेलवे लाईन प्रतिदिन बढ़ रही है, इससे नवीन मार्ग भी खुलते जाते है; सम्भव है कि जिस रेलवे स्टेशनसे जानेका अब मार्ग है, वह आगे न रहे. इस कारण पाठक वर्गसे हमारा नम्र निवेदन है कि वह उस जगह पर उसको सधारकर पढ़ें तथा हमको कृपा करके सूचित करें जिससे हम द्वितीयावृत्तिमें ठीक कर देखें। ___हमारी मातृ भाषा गुजराती है. हिन्दी भाषामें पुस्तक प्रगट करनेका हमको यह प्रथमही समय था. इस लिये भाषाकी कई एक अशुद्धियां थीं जिसको पंडित गोविन्दरायनी, विद्यार्थी स्याद्वाद महाविद्यालय काशीने सुधार दी है, निससे मैं उनका चिर कृतज्ञ हूं।
निवेदक, डाह्याभाई शिवलाल.