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________________ (३२) पृथ्वी " बौद्धमत की बहुत सी मूर्तियां खन्डित तथा अखंडित दोनों तरहकी यहा पर डरी हुई है, एक समय इस जगह पर बौद्ध मातड अपनी प्रखर रश्मियोंसे ऐसा मौजूद था कि जगत भरमें कोई भी उसके विरुद्ध आंखभी नहीं उठा सकता था, आज वही अस्त होकर कालके गभीर गर्भ में ऐसा समाया कि उस जगहपर उसका एक भी अनुयायी दृष्टि गोचर नहीं होता है, अस्तु यहांके दर्शनकर विहार आवें। यहांपर दर्शनकर भगवान महावीरस्वामीकी निर्वाणभूमि पावापुरीमें आवें । धर्मशाला मंदिरके पास ही है, यहांपर तालाव के वीचमें पुराने समयका बना हुआ मंदिर है, इस मंदिरको तथा यहां के प्राकृतिक दृश्यको देखकर अपूर्व आनन्द होता है, ऐसा विलक्षण मंदिर भारतवर्ष भरमें कहीं नहीं है। दीपमालिका (दिवाली) के दिन यहां पर मेला लगता है। पावापुरीसे चलकर गुणावानी में ठहरें यहा पर भी तालावके बीचमें मंदिर है यह गौतमस्वामीकी निर्वाणभूमि है यहांसे १ मीलकी दूरीपर नवादा स्टेशन है, नवादासे रेलवे में बैठकर, नाथनगर उतरें। स्टेशनसे आधी मील की दूरीपर चम्पापुरी है। यहाके दर्शन कर यहांपर छपरावाले तथा कलकत्तेवालोंके मिलकर दो मंदिर है, दोनों जगह ठहरनेके लिये स्थान है। यहासे वासुपूज्य स्वामीका निर्वाण हुआ. है। यहांसे रेल तथा वैलगाड़ी द्वारा भागलपुर होते हुए मंदारगिरजी जाना चाहिये । भागलपुरमें ठहरें तथा साथमें कुछ आवश्यक सामान लेकर मंदारहिलका टिकट लेवें तथा सवेरे वहां पहुंचे और दर्शन करके शामको लौट आवें । उत्तर पुराणके अनुसार मंदारगिरी बांसुपूज्य
SR No.010325
Book TitleJain Tirth Yatra Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDahyabhai Shivlal
PublisherDahyabhai Shivlal
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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