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________________ (१०) देशमें यात्रा करते है उसका प्राकृतिक दृश्य भी रेलगाड़ीसे नज़र आता है. १५. निस तीर्थपर गये हो वहांसे यदि आगेके तीर्थपर जानेके लिये पूरा २ हाल मालूम न हो तो वहांसे लौटे हुए यात्रियोंसे अथवा वहांके मैनेजरसे सारा हाल पूंछ लेना चाहिये. जिस तीर्थपर जो चीज़ देना चाहते हो उस चीज़को अपने हाथसे वहांकी __ मंडारवहीमें लिख दो और उसकी रसीद वहांके मैनेजर अथवा रो कडियासे ले लो. गत रीतिसे दान करनेकी चीज गप्त भंडारमें ही __ छोड़ दो, न कि योंही जहां चाहो वहां रख दो. जो चीज़ गुप्त मंडारके बदले ऊपर ही रक्खी जाय उसकी इत्तिला वहाँके मैनेजर को दे दो नहीं तो छोटे २ नौकर उसको उड़ा लेते हैं और वह भंडार में जमा भी नहीं होने पाती. जैनियोंके तीर्थ अधिक तर पहा के ऊपर है इस लिये जाड़ेकी मौसम (आश्विनसे फाल्गुन') यात्राके लिए अच्छी गिनी जाती है. क्योंकि उन दिनोमें 'ठंडीके सिवाय और तकलीक नहीं होती. गरमाके दिनोंमें पहाड़के ऊपर पत्थर तप्त हो जाते है, यात्रीको ज्यादा समय पहाड़पर ठहरकर 'स्थिरतापूर्वक धर्म ध्यान करनेका अवकाश नहीं मिलता व बाल बच्चोंको प्यास · लग आती है इस लिये यात्रीको आश्विनसे फाल्गुण तक यात्रा करनेके वास्ते गमन करना चाहिये.
SR No.010325
Book TitleJain Tirth Yatra Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDahyabhai Shivlal
PublisherDahyabhai Shivlal
Publication Year
Total Pages77
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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