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सं० १२२६ को एक ग्राम भेंट किया था। इनको सन् १९७० ई० में लोलक नामक श्रावक ने बनवाया था। मालूम होता हैं कि यहां पर उस समय दि० जैन भट्टारकों की गद्दी थी । पदुमनन्दिशुभचन्द्र आदि भट्टारकों की यहाँ मूर्तियाँ भी बनी हुई हैं। इसका प्राचीन नाम विन्ध्याचली था । यहाँ के कुण्डों में स्नान करने के लिए दूर-दूर से यात्री आते थे। शहर में दि० जैनियों की वस्ती और एक दि० जैन मंदिर है ।
चित्तौड़गढ़
सन् ७३८ ई० में वप्पारावल ने चित्तौड़ राज्य की नींव डाली थी । यहाँ का पुराना किला मशहूर है, जिसमें छोटे बड़े ३५ तालाब और सात फाटक हैं । दर्शनीय वस्तुनों में कीर्तिस्तम्भ जयस्तम्भ, राणा कुम्भा का महल श्रादि स्थान हैं। कीर्तिस्तम्भ ८० फीट ऊँचा है। इसको दि० जैन वघेरवाल महाजन जीजा ने १२ वीं १३ वीं शताब्दी में प्रथम तीर्थङ्कर श्री प्रादिनाथ जी की प्रतिष्ठा में बनवाया था। इसमें प्रादिनाथ भगवान की मूर्ति विराजमान हैं। और अनेकों दिगम्बर मूर्तियां उकेरी हुई हैं। जयस्तम्भ १२० फीट ऊँचा है। इसे राणा कुम्भा ने बनवाया था । इनके अतिरिक्त यहाँ और भी प्राचीन मन्दिर हैं। यहां से नीमच होता हुआ इन्दौर जावे |
इन्दौर
इन्दौर सम्भवतः १७१५ ई० में बसाया गया था । यह होल्कर राज्य की राजधानी थी। यहां की रानी अहिल्याबाई जगत प्रसिद्ध है । खण्डेलवाल जैनियों की प्राबादी खासी है। स्टेशन से एक फर्लांग के फासले पर जंवरीबाग में रावराजा दानवीर सरसेठ स्वरुपचन्द हुकुमचन्द जी की नसियाँ हैं। वहीं धर्मशाला है । एक विशाल एवं रमणीक जिन मन्दिर हैं। इसी धर्मशाला के