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[५५] क्योंकि चामुण्डराय जी को थोड़ा सा अभिमान हो गया था। एक वृद्धा भक्तिन गोल्लकायि नारियल में दूध भर कर लाई और भक्ति पूर्वक अभिषेक किया तो वह सर्वाङ्ग सम्पन्न हुआ। चामुण्डराय जी ने उसकी भक्ति चिरस्थायी बना दी।
श्री बाहुबलि जी श्री तीर्थङ्कर ऋषभ जी के पुत्र और भरत चक्रवर्ती के भाई थे। राज्य के लिए दोनों भाईयों में युद्ध हुआ था। बाहुबलि की विजय हुई। परन्तु उन्होंने राज्य अपने बड़े भाई को दे दिया और स्वयं तप कर सिद्धपरमात्मा हुए। भरत जी ने कोदनपुर में उनकी बृहत्काय मूर्ति स्थापित की, परन्तु कालान्तर में उसके चहुँोर इतने कुक्कुट सर्प हो गये कि दर्शन करने दुर्लभ थे । गंगराजा राचमल्ल के सेनापति चामुण्डराय अपनी माता की इच्छानुसार उनकी वन्दना करने के लिए चले, परन्तु उनकी यात्रा अधूरी रही। इसलिए उन्होंने श्रवणबेलगोल में ही एक वैसी ही मूर्ति स्थापित करना निश्चित किया । उन्होंने चन्द्रगिरि पर्वत पर खड़े होकर एक सोने का तीर मारा जो इन्द्रगिरि पहाड़ पर किसी चट्टान में जा लगा। इस चट्टान में उनको गोम्मटेश्वर के दर्शन हुए। चामुण्डराय जी ने श्री नेमिचद्राचार्य की देख रेख में यह महान मूर्ति सन् १८३ ई० के लगभग बनवाई थी। यह उत्तराभिमुखी है और हल्के भूरे रंग के महीन कंकरीले पत्थर (Granite) को काटकर बनाई गई है। यह विशाल मूर्ति इतनी स्वच्छ और सजीव है कि मानो शिल्पी अभी ही उसे बनाकर हटा है। इस स्थान के अत्यन्त सुन्दर और मूर्ति के बड़ा होने के ख्याल से गोम्मटेश्वर की यह महान् मूर्ति मिश्र देश के रंमसेस राजाओं की मूर्तियों से भी बढ़कर अद्भुत एवं ग्राश्चर्यजनक सिद्ध होती है। इतना महान् अखण्ड शिलाविग्रह संसार में अन्यत्र नहीं हैं । निस्सन्देह त्याग और वैराग्य मूर्ति के मुख पर सुन्दर नृत्य