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[ ५३ ] दिग्दियान्तरों में प्रख्यात् थी-यहाँ के प्राचार्यों ने बड़े बड़े राजा, महाराजाओं से सम्मान प्राप्त किया था और उन्हें जैन धर्म की दीक्षा दी थी। श्रवणबेलगोल पर राजा, महाराजा, रानी, राजकुमार, बड़े २ सेनापति, राजमंत्री और सब ही वर्ग के मनुष्यों ने पाकर धर्माराधना की है। उन्होंने अपने प्रात्मबल को प्रगट करने के लिए यहां सल्लेखनाव्रत धारण किया-भद्रबाहु स्वामी के स्थापित किये हुये आदर्श को जैनियों ने खूब निभाया। श्रवणबेलगोल इस बात का प्रत्यक्ष साक्षी है कि जैनियों का साम्राज्य देश के लिए कितना हितकर था और उनके सम्राट किस तरह धर्म साम्राज्य स्थापित करने के लिए ललायित थे। श्रवणबलगोल का महत्व प्रत्येक जैनी को आत्म वीरता का संदेश देने में गर्भित हैं। यहां लगभग ५०० शिलालेख जैनियों का पूर्व गौरव प्रकट करते हैं। +
श्रवणबेलगोल गांव के दोनों ओर दो मनोहर पर्वत (1) विध्यगिरि अथवा इन्द्रगिरि और (२) चन्द्रगिरि हैं। गांव के बीच में कल्याणी झील है। इसलिए यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य चित्ताकर्षक है। इन्द्रगिरि को यहां के लोग दोड्ड-बेट्ट (बड़ा पहाड़) कहते हैं जो मैद न से ४०० फीट ऊँचा है। इस पर चढ़ने के लिए पांच सौ सीढ़ियां बनी हुई हैं। इस पर्वत पर चढ़ते ही पहले ब्रह्मदेव मन्दिर पड़ता है, जिसकी अटारी में पार्श्वनाथ स्वामी की एक मूर्ति है । पर्वत की चोटी पर पत्थर की प्राचीन दीवार का घेरा है, जिसके अन्दर बहुत से प्राचीन जिन मन्दिर है। घुसते ही एक छोटा सा मन्दिर "चौबीस तीर्थङ्कर बसती" नामक मिलता है, जिसमें १६४८ ई० का स्थापित किया हुआ +देखो श्री माणिकचन्द ग्रन्थमाला का “जैन शिलालेख संग्रह" भा० १