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ध्यान योग्य गुफायें हैं। आगे 'गुप्त गंगा', श्यामकुण्ड' और 'राधाकुण्ड' नामक कुण्ड बने हुये हैं। फिर राजा इन्द्रकेशरी की गुफा हैं, जिसमें आठ दि० जैन खड्गासन प्रतिमायें अङ्कित हैं। उपरान्त २४ तीर्थङ्करों की दिग० प्रतिमायों वाली
आदिनाथ गुफा है । अनंतः बारहभुजी गुफा मिलती हैं, जिनमें भी १३ जिन प्रतिमायें दक्षिणी मूर्तियों सहित हैं। यहां कुल ११७ गुफायें हैं । इन सबकी दर्शनपूजा करके यात्रियों को भुवनेश्वर स्टेशन लौट आना चाहिए । इच्छा हो तो जगन्नाथ पुरी जाकर समुद्र का दृश्य देखना चाहिए। पुरी हिन्दुओं का खास तीर्थ है। जगन्नाथ जी के मंदिर के दक्षिण द्वार पर श्री आदिनाथ जी की प्रतिमा है। वहाँ से खुरदार रोड़ होकर मद्रास का टिकट लेना चाहिए, बीच में कोहन तीर्थस्थान वही हैं।
मद्रास मद्रास वाणिज्य, व्यापार और शिक्षा का मुख्य केन्द्र है और एक बड़ा बन्दरगाह है । एक दिगम्बर जैन मंदिर और चैत्यालजय है ये अब तो दिगम्बर जैन धर्मशाला भी बन गई है। यहाँ के अजायबघर में अनेक दर्शनीय प्रतिमायें हैं। विक्टोरिया पब्लिक हाल में काले पाषाण की श्री गोम्मटस्वामी की कायोत्सर्ग प्रतिमा अति मनोहर है। मद्रास के आस-पास जैनियों के प्राचीन स्थान बिखरे हैं। प्राचीन मैलापुर समुद्र में डूब गया हैं और उसकी प्राचीन प्रतिमा, जो श्री नेमिनाथ की थी वह चिताम्बूर में विराजमान हैं । यहां नेमिनाथ स्वामी का प्रसिद्ध मंदिर था। इसमें कुन्दकुन्द आचार्य के चरण विराजमान थे। यह नयनार मंदिर कहलाता था। नयनार का अर्थ जैन है। शैवों ने इस पर अधिकार कर लिया है। उसके दर्शन करना चाहिए। यही वह स्थान है, जहां पर तामिल के प्रसिद्ध नीति-ग्रन्थ 'कुरुल' के रचयिता रहते थे। वह ग्रन्थ श्री कुन्दकुन्दाचार्य की रचना है । उसमें मैलापुर की चर्चा