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[४३ ] । ३८ मील के फासले पर कुलुहा पहाड़ है, जिसे 'जैनीपहाड़' नाम से पुकारते हैं। श्री शीतलनाथ भ० ने इस पर्वत पर पश्चरण किया था। और केवल ज्ञान प्राप्त किया था। कुलुहा र्वित से ५-६ मील दूर पर भोंदल गांव है । यही प्राचीन भद्रिलपुर है जहां शीतलनाथ स्वामी के गर्भ और जन्म कल्याणक हुए
। कूलुहा पहाड़ पर प्राचीन प्रतिमायें दर्शनीय हैं, परन्तु रास्ता खराब है वहां से गया लौटे । गया से ईसरी (पारसनाथहिल स्टेशन उतरे, जहाँ धर्मशाला में ठहरे । यहाँ से सम्मेदशिखर पर्वत दिखाई ड़िता है। गाड़ी या मोटर सर्विस से पहाड़ की तलहटी मधुवन में पहुँच जावे।
__ मधुवन (सम्मेदशिखर पर्वत) मधुवन में तेरापंथी और बीसपंथी कोठियों के आधीन हरने के लिए कई धर्मशालाये हैं। दि० जैन मंदिर भी अनेक है, जनकी रचना सुन्दर और दर्शनीय है। बाजार में सब प्रकार का नरूरी सामान मिलता है । पहले मधुवन को 'मधुरवनम्' कहते थे।
सम्मेदाचल वह महापवित्र तथा अत्यन्त प्राचीन सिद्धक्षेत्र है, जिसकी वन्दना करना प्रत्येक जैनी अपना अहोभाग्य समझता है। अनन्तानन्त मुनिगण यहां से मुक्त हुए है- अनंत तीर्थङ्कर भगवान अपनी अमृतवाणी और दिव्यदर्शन से इस तीर्थ को पवित्र बना चुके है। इस युग के अजितनाथादि बीस तीर्थङ्कर भी यहीं से मोक्ष पधारे थे। मधुकैटभ जैसे दुराचारी प्राणी भी यहाँ के पतीत पावन वातावरण में आकर पवित्र हो गए। यहीं से वे स्वर्ग सिधारे। निस्सन्देह इस तीर्थराज की महिमा अपार है। इन्द्रादिकवेव उसकी वंदना करके ही अपना जीवन सफल हुमा समझते हैं। क्षेत्र का प्रभाव इतना प्रबल है कि यदि कोई भव्य जीव इस तीर्थ की यात्रा वंदना भाव सहित करे तो